सच बताऊँ? समोसे का नाम सुनते ही दिमाग में चाय, बारिश और गरमागरम आलू मसाले की खुशबू घूमने लगती है। लेकिन ज़रा सोचो, ये जो हम “अपना देसी समोसा” मानते हैं, असल में इसकी जड़ें भारत से बाहर हैं। हाँ जी, समोसा असल में विदेशी मेहमान था।
फारस से चली शुरुआत
इतिहास खंगालो तो पता चलता है कि समोसे का असली बाप-दादा फारस (Persia) से आया था। वहाँ इसे “सम्बोसा” कहा जाता था। उस समय इसमें आलू नहीं, बल्कि मांस, मेवे और मसाले भरे जाते थे। लंबी यात्राओं पर निकलने वाले व्यापारी इसे साथ ले जाते थे — आसान था, पेट भर देता था और चलते-चलते खाया जा सकता था।
जरा सोचो… ऊँटों के काफ़िले, रेगिस्तान की धूल और बीच में किसी ने पोटली से कुरकुरे सम्बोसे निकाल लिए। जैसे आज हम ट्रेन में समोसे निकालकर साथी के साथ बाँटते हैं। वही vibe थी।
भारत में एंट्री और बदलाव
13वीं–14वीं सदी में जब दिल्ली सल्तनत के ज़माने में समोसा भारत आया तो पहले ये राजाओं-नवाबों की दावतों में परोसा जाता था। लेकिन धीरे-धीरे गली-मोहल्लों तक पहुँच गया। और भारत ने क्या किया? हमेशा की तरह उसे अपना बना लिया।
बड़ा ट्विस्ट आया जब पुर्तगाली आलू हमारे यहाँ पहुँचे। उससे पहले समोसे में ज्यादातर मांस भरते थे। लेकिन आलू और मसालों का कॉम्बिनेशन इतना धमाकेदार निकला कि अब सोच भी नहीं सकते कि समोसा बिना आलू कैसा लगेगा।
गली-गली का राजा 👑
आज की तारीख में समोसा हर जगह है। कॉलेज कैंटीन से लेकर ऑफिस ब्रेक तक, शादी-ब्याह से लेकर स्टेशन प्लेटफ़ॉर्म तक। चाहे ₹10 वाले ठेले का समोसा हो या होटल में “गौर्मे समोसा” के नाम से परोसा जाने वाला वर्ज़न — ये सबका अपना है।
और हाँ, वेराइटी तो पूछो ही मत। पंजाबी समोसा — बड़ा और आलू से भरा। हैदराबादी समोसा — मीट वाला। गुजरात में मीठा समोसा तक मिलता है। मतलब, हर राज्य ने इसमें अपनी पहचान डाल दी है।
मेरे लिए क्यों ख़ास है
कभी-कभी लगता है कि समोसा सिर्फ़ खाना नहीं, यादें है। बचपन के टिफ़िन में रखा समोसा, कॉलेज की कैंटीन में दोस्तों के साथ झगड़कर लिया हुआ “आखिरी समोसा”, या बारिश के दिन घर लौटते वक्त ठेले से उठाया हुआ गरम समोसा… हर जगह इसकी अपनी कहानी है।
ये सोचकर मज़ा आता है कि सदियों पहले फारस का यात्री जिस सम्बोसे का मज़ा ले रहा था, आज वही हम अदरक वाली चाय में डुबोकर खाते हैं।
आख़िरी निवाला
तो अगली बार जब आप गरमागरम समोसा हाथ में पकड़ें, थोड़ा रुककर सोचिए। आप सिर्फ़ आलू-मसाले का पैकेट नहीं खा रहे, बल्कि एक ऐसा इतिहास चख रहे हैं जिसने देशों को जोड़ा और हमारी ज़िंदगी में स्थायी जगह बना ली।
और मानिए, इतना लंबा सफ़र करने के बाद — ये तिकोना सच में deserve करता है हमारी हर चाय के साथ बैठने का हक़। ☕🥟