आपको कभी ऐसा हुआ है? न्यूज़ स्क्रॉल कर रहे हो और अचानक एक हेडलाइन सामने आ जाए — “ भारत ने अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष दर्ज किया” — और आप दो सेकंड को रुक जाएं। मेरे साथ हाल ही में यही हुआ।
देखिए, अमेरिका हमारा सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है। और ये रिश्ता सिर्फ ठंडे-ठंडे आँकड़ों तक सीमित नहीं है। ये कुछ-कुछ उस पारिवारिक रिश्ते जैसा है जहाँ कभी बहस होती है, कभी मुकाबला, कभी असहमति… लेकिन अंत में नाता और गहरा हो जाता है।
बड़ा परिदृश्य (बिना किताब जैसा लगे)
FY24 में जो बात मेरी नज़र में आई — भारत ने अमेरिका को करीब 77.5 बिलियन डॉलर का निर्यात किया। वहीं आयात? लगभग 40.7 बिलियन डॉलर। यानी साफ-साफ 36.8 बिलियन डॉलर का अधिशेष।
अब मैं कोई इकोनॉमिस्ट नहीं हूँ, लेकिन इतना तो समझ आता है — ये वाकई बड़ी बात है।
सोचिए, हम उन्हें 17.6 बिलियन डॉलर के इंजीनियरिंग गुड्स बेच रहे हैं (हाँ, वही मशीनें और पार्ट्स जो बेहद जटिल होते हैं), 10 बिलियन डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक सामान, और फिर हमारे पुराने रत्न व आभूषण — 9.9 बिलियन डॉलर। दवाइयों और फार्मा की बात करें तो और 8.7 बिलियन डॉलर।काफी अच्छा लगता है, है ना? ये जानकर कि दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी इतनी खुशी-खुशी भारतीय दवाइयाँ, टेक्नोलॉजी और कॉटन शर्ट्स खरीद रही है। 🙂
आयात: हम क्या खरीद रहे हैं
लेकिन व्यापार कभी एकतरफ़ा नहीं होता। हम भी अमेरिका से बहुत कुछ उठा रहे हैं — सबसे ज़्यादा मिनरल फ्यूल और ऑयल्स (करीब 12.9 बिलियन डॉलर)। इसके अलावा कीमती पत्थर, हैवी मशीनें, यहाँ तक कि न्यूक्लियर रिएक्टर पार्ट्स भी।
थोड़ा अजीब-सा कॉम्बिनेशन है, है ना? हम उन्हें रेडीमेड सामान और फैशन भेजते हैं, और बदले में वो हमें ऊर्जा और टेक्नोलॉजी देते हैं। जैसे कोई बहुत बड़े पैमाने का बार्टर सिस्टम हो।
सामान से परे: ये लोग भी हैं
आँकड़े मज़ेदार हैं, पर व्यापार सिर्फ कंटेनरों और जहाजों तक सिमटा नहीं है। हर साल सितंबर में हजारों छात्र अमेरिका जाते हैं। वीज़ा, मीटिंग्स, समिट्स — सब इसी रिश्ते की कड़ी हैं।
क्या आप जानते हैं, 3.2 लाख से ज़्यादा भारतीय छात्र इस वक्त अमेरिका में पढ़ रहे हैं? सोचिए कितनी इकोनॉमी, कितने आइडियाज़ और कितने नेटवर्क वहाँ बन रहे होंगे। ये भी तो व्यापार ही है — बस टन और बैरल में मापा नहीं जा सकता।
और हाँ, सिर्फ छात्र ही नहीं — अमेरिका की कई सबसे बड़ी कंपनियों के CEO भारतीय हैं। सुंदर पिचाई ( Google), सत्य नडेला ( Microsoft), अर्जुन अय्यंगार ( Adobe), अजय बंगा ( World Bank के प्रेसीडेंट बनने से पहले Mastercard के CEO) — ये सब नाम बताते हैं कि भारत और अमेरिका का रिश्ता सिर्फ व्यापार तक नहीं है, बल्कि टैलेंट और लीडरशिप तक गहराई से जुड़ा हुआ है। ये कहीं न कहीं दोनों देशों की साझेदारी को और मज़बूत बनाता है।
और तो और, अब ये रिश्ता रक्षा अभ्यासों, क्लाइमेट टॉक्स और स्पेस प्रोजेक्ट्स तक फैल चुका है। रिपोर्ट्स में जो आंकड़े दिखते हैं, उनके पीछे ऐसी कई अदृश्य परतें भी हैं।
मेरी सोच
कभी-कभी मैं सोचता हूँ — क्या हम इस उपलब्धि को सही मायनों में मनाते हैं? एक देश, जिसे कभी सिर्फ "उभरती हुई अर्थव्यवस्था" कहा जाता था, आज अमेरिका जैसे दिग्गज को अरबों डॉलर का सामान बेच रहा है और टेक्नोलॉजी, डिफेंस और क्लीन एनर्जी की बातचीत में बराबरी से शामिल है। ये प्रगति महसूस की जा सकती है।
हाँ, दिक्कतें हैं — टैरिफ, बातचीतें, वैश्विक मंदी। लेकिन दिशा सही लगती है। व्यापार सिर्फ पैसों का लेन-देन नहीं होता; ये भरोसे और आपसी निर्भरता का आईना है।
और सच कहूँ तो, मुझे बड़ा अच्छा लगता है ये सोचकर कि न्यूयॉर्क में कोई गैजेट, शिकागो में कोई दवा, या लॉस एंजेलिस में कोई कंगन… उस पर “ Made in India” लिखा होगा। मुस्कान आ ही जाती है, है ना? 🙂
👉 भारत-अमेरिका व्यापार सिर्फ इकोनॉमिक्स नहीं है। ये पहचान है, महत्वाकांक्षा है… और हाँ, थोड़ा गर्व भी।