लोकसभा में खेल विधेयक पास: क्या यह सच में खेलों का सबसे बड़ा बदलाव है?

लोकसभा में खेल विधेयक पास: क्या यह सच में खेलों का सबसे बड़ा बदलाव है?

लोकसभा ने राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक पास किया, जिसे आज़ादी के बाद का सबसे बड़ा खेल सुधार कहा जा रहा है। खिलाड़ियों की भागीदारी, पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने वाले इस बिल से भारत के खेलों का भविष्य बदल सकता है।

सोचिए, एक देश जो ओलंपिक में अरबों उम्मीदें लेकर उतरता है, लेकिन अक्सर पदक तालिका में गिने-चुने नाम ही दिखते हैं। अब सरकार कह रही है कि खेलों की तस्वीर बदलने का वक्त आ गया है और इसी सोच के साथ लोकसभा ने पास कर दिया राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक। खेल मंत्री मनसुख मांडविया ने तो इसे “आज़ादी के बाद का सबसे बड़ा खेल सुधार” तक कह दिया। बड़ी बात है, है ना? लेकिन सवाल ये है… क्या ये बदलाव मैदान तक पहुंचेगा?  
 

ये बिल आखिर करता क्या है?  

सीधी भाषा में कहूँ तो, यह बिल खेल संघों को “जवाबदेह” बनाने की कोशिश है। यानी अब कोई भी राष्ट्रीय खेल महासंघ अगर चुनाव में गड़बड़ी करे, हिसाब-किताब छुपाए, या सरकारी फंड का गलत इस्तेमाल करे तो उसके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है।    
इसके लिए नेशनल स्पोर्ट्स बोर्ड ( NSB) बनाया जाएगा, जो न सिर्फ फंडिंग को कंट्रोल करेगा, बल्कि जरूरत पड़ने पर किसी संघ को डिरेकोग्नाइज़ भी कर सकता है। और हाँ, खिलाड़ियों और संघों के बीच होने वाले विवादों के लिए एक नेशनल स्पोर्ट्स ट्रिब्यूनल भी होगा, जो कोर्ट जैसी ताकत रखेगा।  

 

थोड़ा इतिहास भी जान लें  

ये आइडिया नया नहीं है। 1975 में कोशिश शुरू हुई, 1985 में ड्राफ्ट आया, 2011 में “नेशनल स्पोर्ट्स कोड” बना… लेकिन हर बार या तो ड्रॉअर में बंद हो गया या राजनीति की उलझनों में अटक गया। इस बार सरकार मान रही है कि 2036 ओलंपिक की बोली लगाने से पहले खेल प्रशासन को दुरुस्त करना जरूरी है।  

 

खिलाड़ियों के लिए अच्छे संकेत  

मुझे एक चीज़ खास लगी खिलाड़ियों को अब सिर्फ मैदान में ही नहीं, बल्कि फैसले लेने वाली टेबल पर भी जगह मिलेगी। सोचिए, कोई ओलंपिक मेडलिस्ट अगर चयन नीति पर राय दे, तो वो किसी भी नौकरशाह से ज्यादा जमीनी सच बता पाएगा।    
इसके अलावा, महिला और दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए भी अलग से प्रावधान रखे गए हैं ट्रेनिंग से लेकर पुरस्कार तक, सबमें बराबरी की गारंटी।  


क्रिकेट बोर्ड पर RTI का असर?  

ये तो बड़ा दिलचस्प है ज्यादातर खेल संघ RTI के दायरे में आएंगे, लेकिन BCCI को छूट मिली है, क्योंकि वो सरकारी फंड पर निर्भर नहीं है। हाँ, जो संघ सरकारी मदद लेते हैं, उन्हें RTI का जवाब देना ही पड़ेगा।  


एंटी-डोपिंग में भी बदलाव  

साथ ही, लोकसभा ने राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग (संशोधन) विधेयक-2025 भी पास कर दिया। वर्ल्ड एंटी-डोपिंग एजेंसी ( WADA) ने पहले आपत्ति जताई थी कि भारत की एजेंसी पर सरकार का ज्यादा नियंत्रण है। अब संशोधन में NADA को ऑपरेशनल इंडिपेंडेंस दी गई है, ताकि अंतरराष्ट्रीय मानकों पर कोई सवाल न उठे।  

क्या ये सच में गेम-चेंजर होगा?  

देखिए, कागज पर तो सब शानदार लग रहा है। जवाबदेही, पारदर्शिता, खिलाड़ियों की भागीदारी सुनने में सपना जैसा। लेकिन असली इम्तिहान तब होगा जब ये नियम धरातल पर लागू होंगे।    
क्योंकि भारत में अक्सर कानून अच्छे बनते हैं, लेकिन क्रियान्वयन में ही गेम हार जाते हैं।    
मुझे लगता है, अगर सरकार ने सच में इसे ईमानदारी से लागू कर दिया, तो आने वाले 10-15 साल में भारत की खेल कहानी बिल्कुल नई हो सकती है। और शायद, वो दिन भी आए जब हम ओलंपिक में सिर्फ़ भाग लेने नहीं, बल्कि जीतने जाएँ।